sanskrit shlok with meaning
स्वर्गो धनं वा धान्यं वा विद्या पुत्राः सुखानि च।
गुरुवृत्यनुरोधेन न किञ्चिदपि दुर्लभम्।।
अर्थ- गुरुजनों की सेवा से स्वर्ग, धन-धान्य, विद्या, पुत्र और सुख कुछ भी दुर्लभ नहीं है।
व्यसने वार्थकृच्छ्रे वा भये वा जीवितान्तगते।
विमृशंश्च स्वया बुद्ध्या धृतिमान नावसीदति।।
अर्थ- शोक में, आर्थिक संकट में या प्राणों का संकट होने पर जो अपनी बुद्धि से विचार करते हुए धैर्य धारण करता है। उसे अधिक कष्ट नहीं उठाना पड़ता।
sanskrit shlok with meaning in hindi
मूढ़ैः प्रकल्पितं दैवं तत परास्ते क्षयं गताः।
प्राज्ञास्तु पौरुषार्थेन पदमुत्तमतां गताः।।
अर्थ- भाग्य की कल्पना मूर्ख लोग ही करते हैं। बुद्धिमान लोग तो अपने पुरूषार्थ, कर्म और उद्द्यम के द्वारा उत्तम पद को प्राप्त कर लेते हैं।
अबन्धुर्बन्धुतामेति नैकट्याभ्यासयोगतः।
यात्यनभ्यासतो दूरात्स्नेहो बन्धुषु तानवम्।।
अर्थ- बार बार मिलने से अपरिचित भी मित्र बन जाते हैं। दूरी के कारण न मिल पाने से बन्धुओं में स्नेह कम हो जाता है।
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।
अर्थ- प्रिय वचन बोलने से सभी जीव प्रसन्न हो जाते हैं। मधुर वचन बोलने से पराया भी अपना हो जाता है। अतः प्रिय वचन बोलने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए।
स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम्।
परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते।।
अर्थ- संसार में जन्म मरण का चक्र चलता ही रहता है। लेकिन जन्म लेना उसका सफल है। जिसके जन्म से कुल की उन्नति हो।
यत्र स्त्री यत्र कितवो बालो यत्रानुशासिता।
मज्जन्ति तेवशा राजन् नद्यामश्मप्लवा इव।।
अर्थ- जहां का शासन स्त्री, जुआरी और बालक के हाथ में होता है। वहां के लोग नदी में पत्थर की नाव में बैठने वालों की भांति विवश होकर विपत्ति के समुद्र में डूब जाते हैं।
easy sanskrit shlok
धृतिः शमो दमः शौचं कारुण्यं वागनिष्ठुरा।
मित्राणाम् चानभिद्रोहः सप्तैताः समिधः श्रियः।।
अर्थ- धैर्य, मन पर अंकुश, इन्द्रियसंयम, पवित्रता, दया, मधुर वाणी और मित्र से द्रोह न करना ये सात चीजें लक्ष्मी को बढ़ाने वाली हैं।
न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविश्वसेत्।
विश्वासाद् भयमभ्येति नापरीक्ष्य च विश्वसेत्।।
अर्थ- जो विश्वसनीय नहीं है, उस पर कभी भी विश्वास न करें। परन्तु जो विश्वासपात्र है, उस पर भी आंख मूंदकर भरोसा न करें। क्योंकि अधिक विश्वास से भय उत्पन्न होता है। इसलिए बिना उचित परीक्षा लिए किसी पर भी विश्वास न करें।
Shlok in Sanskrit
आयुर्वित्तं गृहच्छिद्रं मन्त्रमैथुनभेषजम्।
दानमानापमानं च नवैतानि सुगोपयेत्।।
अर्थ- आयु, धन, घर के दोष, मन्त्र, मैथुन, दवा, दान, मान और अपमान यह किसी से नहीं कहना चाहिए।
उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये।
पयःपानं भुजंगानां केवलं विषवर्द्धनम्।।
अर्थ- मूर्खों को दिया गया उपदेश उनके क्रोध को शांत न करके और बढ़ाता ही है। जैसे सर्पों को दूध पिलाने से उनका विष ही बढ़ता है
यौवनं धनसम्पत्तिः प्रभुत्वमविवेकिता।
एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम्।।
अर्थ- यौवन, धन संपत्ति, प्रभुता और अविवेक इनमें से एक भी अनर्थ करने वाला है। लेकिन जिसके पास ये चारों हों, उसके विषय में कहना ही क्या !
न स्वल्पस्य कृते भूरि नाशयेन्मतिमान् नरः।
एतदेवातिपाण्डित्यं यत्स्वल्पाद् भूरिरक्षणम्।।
अर्थ- थोड़े के लिए अधिक का नाश न करे, बुद्धिमत्ता इसी में है। बल्कि थोड़े को छोड़कर अधिक की रक्षा करे।
कवचिद् रुष्टः क्वचित्तुष्टो रुष्टस्तचष्टः क्षणे क्षणे।
अव्यवस्थितचित्तस्य प्रसादो अपि भयंकरः।।
अर्थ- जो कभी नाराज होता है, कभी प्रसन्न होता है। इस प्रकार क्षण क्षण में नाराज और प्रसन्न होता रहता है। उस चंचल चित्त पुरुष की प्रसन्नता भी भयंकर है।
जिव्हा दग्धा परान्नेन करौ दग्धौ प्रतिगृहात्।
मनो दग्धं परस्त्रीभिः कार्यसिद्धिः कथं भवेत्।।
अर्थ- दूसरे का अन्न खाने से जिसकी जीभ जल चुकी है। दूसरे का दान लेने से जिसके हाथ जल चुके हैं। दूसरे की स्त्री का चिंतन करने से जिसका मन जक चुका है। उसे पूजा पाठ जप तप से सिद्धि कैसे मिल सकती है।
परान्नं च परद्रव्यं तथैव च प्रतिग्रहम्।
परस्त्रीं परनिन्दां च मनसा अपि विवर्जयेत।।
अर्थ- पराया अन्न, पराई संपत्ति, दान, पराई स्त्री और दूसरे की निंदा इनकी मन से भी इच्छा नहीं करनी चाहिए।
0 Comments